जिद और जुनून...और कुछ अलग करने की इच्छा। जी, हां हम बात कर रहे उन 30 बेटियों की, जो आत्मनिर्भर बनने के लिए एक ऐसे पेशे में कदम रख रही हैं, जहां उनके लिए पहले से ही काफी चुनौतियां हैं। इन सुपर 30 में 18 से 30 साल की युवतियां हैं।
इनमें कुछ 10वीं, कुछ 12वीं और कुछ स्नातक के अलावा अभी बीटेक की छात्रा हैं। जब उनसे यह पूछा गया कि आप ट्रैक्टर चलाना और उसे सुधारने की तकनीक क्यों सीखना चाहती हो...ताे सभी का एक ही जवाब था- आत्मनिर्भर बनने के लिए। उन्होंने बताया कि गांव में हम ट्रैक्टर सुधारने के लिए वर्कशॉप खोलेंगे और वहां के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराएंगे। दरअसल, बड़वई स्थित कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय के कौशल विकास केंद्र में इन युवतियाें को ट्रैक्टर चलाने, सुधारने और कृषि यंत्रों के रखरखाव व मरम्मत करने का प्रशिक्षण दिया गया है।
अब मुझे नौकरी की चिंता नहीं
मेरा परिवार आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है। पिता कृषक हैं। दो बहनों की शादी हो चुकी है। ऐसे में माता-पिता की आर्थिक रूप से सहायता कर सकूं, इसलिए बीटेक (एग्रीकल्चर) कर रही हूं। इससे नौकरी मिलने में आसानी होगी। इसके अलावा अपने गांव में खुद का वर्कशॉप खोलना चाहती हूं, इससे वहां लोगों को भी रोजगार दे पाऊंगी। प्राची मंडलेकर, उम्र 21 वर्ष, इंद्रपुरी
गांव में ट्रैक्टर के मैकेनिक नहीं मिलतेे
पिताजी होम्योपैथी डॉक्टर और मां नर्स हैं। एक भाई है। अभी एग्रीकल्चर से इंजीनियरिंग कर रही हूं। मूलत: छिंदवाड़ा की रहने वाली हूं। वैकल्पिक रोजगार के रूप में गांव में वर्कशाॅप खोलना चाहती हूं। अमूमन गांव में ट्रैक्टर के मैकेनिक नहीं मिलते। शहर तक चक्कर लगाना पड़ता है। इससे वहां के लोगों को इसके लिए नहीं भटकना पड़ेगा। रहनुमा खान, उम्र 21 वर्ष
नामी ट्रैक्टर कंपनियों की ली मदद
देश की नामी ट्रैक्टर कंपनियों को भी प्रशिक्षण में सहभागी बनाया गया, ताकि युवतियों को इसकी समुचित जानकारी मिल सके। इस प्रशिक्षण के लिए पढ़ाई, प्रशिक्षण, भोजन अादि का खर्च सरकार ने उठाया। कौशल विकास केंद्र को केंद्र सरकार के कौशल विकास मंत्रालय के अधीन गठित एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल अॉफ इंडिया (एएससीअाई) से जोड़ा गया है। इसकी वजह एएससीअाई के सर्टिफिकेट की अंतरराष्ट्रीय स्तर की पहचान होना है।
यह अनूठा और पहला प्रयास
संचालनालय के संचालक राजीव चौधरी ने बताया कि देश में पहली बार भोपाल में 30 युवतियों को इस तरह का प्रशिक्षण दिया गया है। एएससीआई का सहयोग भी मिला। इसके सर्टिफिकेट की मान्यता अंतरराष्ट्रीय स्तर की होने से सभी प्रतिभागियों को इसका लाभ मिलेगा। कुछ लड़कियों का ट्रैक्टर कंपनियों में प्लेसमेंट हो गया है। सभी युवतियों को यहां अंग्रेजी भी सिखाई गई, ताकि कम्प्यूटर चलाने में समस्या नहीं अाए। इसका मकसद ये है कि गांव में वह इंटरनेट की मदद से अपनी समस्या का हल तलाश सकती हैं। जो युवतियां गांव में स्वरोजगार करना चाहती हैं, उन्हें सरकार कस्टम हायरिंग स्कीम के आधार पर ट्रैक्टर व उपकरण खरीदने लोन दिलाएगी।